Concentrate on target and Don't be afraid of loneliness , then Success is sure
किसी कठिन कार्य को शुरू करते समय अकेले होने पर इंसान को घबराहट होने लगती है । लेकिन उसका ध्यान उद्देश्य पर केंद्रित रहे तब एकाकीपन बाधा नहीं बनता।
इसी भाव से प्रभावित होकर मप्र के जबलपुर नगर में एक ऐसा सेवा प्रकल्प प्रारम्भ किया गया जिसकी कल्पना करना तक असम्भव प्रतीत होता था । विशेषरूप से यदि बात कैंसर जैसी बीमारी के मरीजों की हो तब कठिनाई और बढ़ जाती है।
दूसरी तरफ ये भी सही है कि इन मरीजों की पीड़ा को महसूस करते हुए उनको सम्बल देने से बड़ा परोपकार और दूसरा कुछ नहीं हो सकता क्योंकि ऐसे मरीजों के जीवन की आशा तो डॉक्टर भी छोड़ देते हैं।
ऐसे मरीजों की घरेलू माहौल में अंतिम सांस तक देखभाल करते हुए उनके शेष जीवन को कष्टरहित बनाने जैसा काम हाथ में लिया विराट हॉस्पिस नामक एक स्वयंसेवी संस्थान ने जिसकी परिकल्पना को साध्वी ज्ञानेश्वरी दीदी ने साकार कर दिखाया।
बिना किसी स्वार्थ के मानवता की सेवा के प्रति समर्पण का भाव उन्हें अपने पूज्य गुरुदेव ब्रह्मलीन ब्रह्मर्षि विश्वात्मा बावरा जी महाराज से बतौर दीक्षा प्राप्त हुआ था।
इस प्रकल्प की शुरुवात अकेले और वह भी बिना संसाधनों के करना असम्भव लगता था लेकिन मन में परोपकार का भाव था इसलिए ईश्वर ने भी कृपा की और देश-विदेश के अनेक सेवाभावी सज्जन बतौर सहयोगी साथ आगे आते गए ।
बिना शासकीय सहायता लिए विराट हॉस्पिस ने अपनी स्थापना के छह वर्ष के भीतर 1040 से ज्यादा कैंसर मरीजों की निःस्वार्थ सेवा कर प्रतिबद्धता शब्द को पूरी तरह सार्थक सिद्ध कर दिखाया ।
विराट हॉस्पिस में मरीजों के लिए हर समय नर्सिंग सेवा उपलब्ध रहती है। इसके साथ दवाइयां, डाक्टरी जाँच, आदि की भी सुविधा दी जाती है। मरीज के साथ एक परिजन या अन्य सहयोगी को भी आवास एवं भोजन प्रदान किया जाता है।
उक्त सभी व्यवस्थाएं पूर्णतः निःशुल्क हैं।
28 बिस्तरों की वर्तमान क्षमतायुक्त विराट हॉस्पिस भेड़ाघाट के निकट गोपालपुर ग्राम में निर्मित अत्याधुनिक भवन में संचालित हो रहा है जिसकी क्षमता भविष्य में बढ़ाकर 48 बिस्तरों तक की जावेगी ।
प्रकृति की गोद में स्थित विराट हॉस्पिस का यह नवीन परिसर मरीजों को मानसिक रूप से आनंदित करने वाला साबित हो रहा है।
निकट भविष्य में यहां रेडियेशन सुविधा भी उपलब्ध कराई जावेगी ।
यह कार्य निरन्तर साधना है जिसमें उन लोगों के सहयोग की सदैव जरूरत पड़ती रहती है जो परोपकार के आदर्श रूप को अपनाते हुए सेवा को जीवन का लक्ष्य बना लेते हैं।
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